
वाक् देवी माँ सरस्वती का कृपा पात्र मानव ज्ञान-विज्ञान अर्जन एवं कला में श्रेष्ठ जीव है। जो चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि मानव मात्र ही ज्ञानार्जन की अद्भुत शक्ति से सम्पन्न प्राणी है, मानव शरीर पंचतत्वों से अर्विभूत, नैत्यकर्म युक्त संचालित प्राणी है, विद्या एवं ज्ञानार्जन ही मानव के विकास व सभ्यता का मूल स्त्रोत है सभी प्रकार के दान कर्मों में द्यादान महत्वपूर्ण है यथा ”अन्न दानं महादानं, विद्यादानं विशिष्यते “।
आर्यावर्त एवं प्रत्येक वैश्विक धर्मग्रन्थ , विद्या, ज्ञान एवं ज्ञानार्जन को महत्व देते हैं, मानव आत्मा में ज्ञान का भंडारण होता है परन्तु वह सुप्त प्राय अवस्था में होता है उसे जागृत करना गुरूकुल एवं गुरूकर्म है, यथा मानव में सुसुप्त तत्व को जागृत करना ही शिक्षा है, आदिकाल से शिक्षा किसी न किसी रूप से होती रही है। प्रारम्भकाल में गुरू-कुल प्रणाली के अनुरूप शिक्षा दीक्षा होती थी उस पद्धति में बालक , बाल्यावस्था में गुरू के आश्रम में रहकर ज्ञार्नजन करता था, तथा किशोरावस्था को प्रात करके गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता था, जगत में ईश्वर रूप में अबतरित महामानव स्वरूप भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम एवं धर्म के उन्नवयक भगवान श्रीकृष्ण ने श्रद्धापूर्वक शिक्षा ग्रहण की भगवान श्रीराम ने गुरू वशिष्ठ तथा भगवान श्रीकृष्ण जी ने संदीपन गुरू के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त की तथा लोक रंजन, लोक नायक तथा लोक
शिक्षक सिद्ध हुए।
परिवेश के साथ-साथ कालान्तर में शिक्षा व्यवस्था में अभूतपूर्व परिवर्तन हुये। आवश्यकता के अनुरूप मानव ने उत्तम जीवन शैली में जीवन यापन हेतु उत्तम शिक्षा की व्यवस्था की। आज मानव 27वीं सदी में शिक्षा के साथ-साथ बहुमुखी विकास हो रहे हैं, आंतरिक्ष विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, वानिकी, प्रौद्योगिकी, सामाजिक वैज्ञानिकी, नवीन टेक्नोलॉजी में विकास हुआ है। जहां मानव 30 किमी0 की दूरी दो दिन में तय करता था, आज बही मानव वहददूरी मात्र 03 मिनट में तय करता है। यहसब शिक्षा एवं ज्ञानार्जन का परिणाम है।
आज मानव प्रत्येक स्थिति में अपने पाल्यों को उत्तम शिक्षा के साथ-साथ उच्च शिक्षा दिलाना चाहता है। क्योंकि शिक्षा एवं ज्ञान ही मनुष्य को विकास के उच्च शिखर पर पहुंचा सकता है।
शुभ कामनाओं सहित।
डा0 मो0 मुस्लिम (पूर्व विधायक)
संस्थापक/अध्यक्ष प्रबन्ध समिति
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